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फर्जी खातों से लेकर क्रिकेट सट्टे तक: मोनू के काले साम्राज्य का "कच्चा चिट्ठा",पढ़े समाचार
/REPORT By DESK PUBLIC TAK

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EDITOR AFZAL QURESHI

  Updated : June 26, 2025

डेस्क! —शहर में फर्जी बैंक खातों का एक बड़ा जाल प्रशासन की जांच में सामने आया था। प्रशासन ने कई खातों को फ्रीज़ कर लाखों रुपये की अवैध रकम पर रोक लगाई है। मगर इसी बीच, एक नाम है जो लगातार चर्चाओं में है— मोनू। सूत्रों की मानें तो मोनू न सिर्फ फर्जी खातों का मास्टरमाइंड है, बल्कि क्रिकेट सट्टेबाज़ी का भी एक बड़ा सिंडिकेट चला रहा है। बताया जाता है कि मोनू के दो गुर्गों को कुछ माह पूर्व ही में हरियाणा पुलिस ने उठाया था। पूछताछ में जब "कंबल कुटाई" हुई तो दोनों ने मोनू का नाम उगल दिया। भनक लगते ही मोनू भूमिगत हो गया— मोबाइल नंबर बंद, व्हाट्सऐप अकाउंट डिलीट, और फिर मनिभाई के प्रभाव से खुदका का "सेटलमेंट" कर लिया। लेकिन कहते हैं ना कि, "जो ऊँची टांग कर मूतता है, उसकी धूम कभी सीधी नहीं होती।" मोनू के कारनामे यहीं खत्म नहीं होते। मोनू और उसका गिरोह फाइनेंस कंपनी की आड़ में फर्जी खातों से लेकर सट्टे की खाईवाली तक के काले कारोबार को अंजाम दे रहा है। दिन में साहूकारी, रात में सिंडिकेट— यह गिरोह एक सुनियोजित तंत्र की तरह काम करता है। शहर की सड़कों पर लग्जरी गाड़ियों में घूमते ये लोग खुद को 'भाई' समझते हैं। लेकिन हकीकत यह है कि ये शहर को अंदर ही अंदर दीमक की तरह खोखला कर रहे हैं। पुलिस कप्तान की जीरो टॉलरेंस नीति के तहत अब तक कई माफियाओं की कमर तोड़ी जा चुकी है। लेकिन मोनू जैसे सफेदपोश अपराधी अभी भी कानून की पकड़ से बाहर हैं। उनके ज़्यादातर साथी फाइनेंस कंपनियों की आड़ में करोड़ों के लेनदेन कर रहे हैं, जिनमें ब्लैक मनी को वाइट मनी में बदलने के तमाम पेंच शामिल हैं। चाइनीज़ फिल्टर APK और हवाला नेटवर्क का कनेक्शन सूत्रों का दावा है कि मोनू और उसके साथी दिल्ली, मुंबई, गुजरात और उदयपुर से फर्जी बैंक खाते इकट्ठा कर चाइनीज फिल्टर APK के ज़रिए इनमें अवैध रकम मंगवाते हैं। फिर एक तय परसेंटेज पर उस राशि को हवाला के ज़रिए अपने आकाओं तक पहुँचाया जाता है। इसके लिए ये गिरोह एक से ज्यादा मोबाइल और सिम का इस्तेमाल करता है। जिन नंबरों से अवैध काम होते हैं, उन्हें ये खासतौर पर छिपाकर रखते हैं। अब सवाल ये है — क्या जिम्मेदारो की पहुंच इन व्हाइट कॉलर माफियाओं तक होगी? और अगर हां, तो कब? ब्यूरो रिपोर्ट पब्लिक तक